Thursday, November 22, 2012

Monday, October 15, 2012

OFFICE

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Thursday, October 4, 2012

TPA CASHLESS FORM

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Friday, August 31, 2012

FACEBOOK STOP


BAD NEWS FOR FACEBOOK USERS,
FACEBOOK WILL STOP IN INDIA DUE TO FACEBOOK SERVER INUNDATION FOR 46MIN. ON 31/08/2012 17:00PM INDIA
I GET THIS INFO FROM FACEBOOK AGENCY. 

Monday, August 27, 2012

विद्या प्राप्ति में बाधा : कारण और निवारण

विद्या प्राप्ति में बाधा : कारण और निवारण

विद्या को धन कहा गया है। मानव जीवन के विकास में शिक्षा की भूमिका अहम होती है। इसके बिना मनुष्य का जीवन पशुवत होता है। माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा देकर उनके जीवन को संवारने का हर संभव प्रयास करते हैं। किंतु अक्सर देखने में आता है कि सारे प्रयासों के बावजूद बच्चों की शिक्षा में तरह-तरह की बाधाएं आती हैं। पाठकों के लाभार्थ यहां बाधाओं का विशद विवरण प्रस्तुत है।

विद्या को चूंकि धन माना गया है, इसलिए ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसका विचार धन भाव से भी किया जाता है। फलदीपिका के प्रथम अध्याय के दसवें श्लोक में स्पष्ट रूप से लिखा है-

वित्तं विद्या स्वान्नपानानि भुक्तिं दक्षाक्ष्यास्थं पत्रिका वाक्कुटुबंम॥

अर्थात धन, विद्या, स्वयं के अधिकार की वस्तु, वाणी आदि का विचार द्वितीय भाव से करना चाहिए।

विद्या तथा द्वितीय भाव और ग्रह

यदि द्वितीय भाव में कोई शुभ ग्रह स्थित हो, इसका संबंध स्वगृही, उच्चस्थ तथा मित्र राशिस्थ ग्रह से हो, तो शिक्षा प्राप्ति में किसी प्रकार की बाधा नहीं आती। शुभ ग्रहों की दृष्टि के फलस्वरूप भी शिक्षा बाधामुक्त होती है, और छात्र एक के बाद एक सफलता की सीढ़ियां चढ़ता चला जाता है।

अष्टम भाव में सिथत नीच ग्रह भी कई बार उच्च शिक्षा की प्राप्ति में सहायक होता है। इसके फलस्वरूप छात्र के लिए जन्मस्थान से दूर या विदेश में रहकर भी विद्या प्राप्ति का योग बनता है। इस भाव में स्थित अशुभ, पापी या क्रूर ग्रह छात्र के विदेश अथवा होस्टल में रहकर विद्याध्ययन के योग बना सकते हैं।

द्वितीय भाव पर ग्रहों के अशुभ प्रभाव विद्या प्राप्ति में बाधा पहुंचा सकते हैं। सूर्य, शनि तथा राहु की पृथकताकारी दृष्टि के प्रभाववश विद्या प्राप्ति में बड़ा संकट आता है। दूसरी तफर, गुरु यदि द्वितीय भाव में स्थित हो, तो प्राप्त विद्या का सही उपयोग नहीं हो पाता है। शुक्र की स्थिति अच्छी विद्या दिलाती है, किंतु अष्टमस्थ शुक्र की दृष्टि यदि द्वितीय भाव पर हो, तो शिक्षा प्राप्ति में अप्रत्याशित संकट या बाधाएं आ सकती हैं। राहु यदि किसी राशि में छठे, आठवें या दसवें भाव में हो, तो छात्र का अध्ययन में मन नहीं लगता, जिससे उसकी शिक्षा बाधित होती है। शनि की पांचवें और आठवें भावों में स्थिति भी शिक्षा की प्राप्ति में बाधक होती है। यह बाधा धन के कारण भी संभव है। शनि की इस स्थिति से प्राप्त विद्या का सदुपयोग भी नहीं हो पाता है। इसी प्रकार अन्य ग्रह भी विद्या प्राप्ति में बाधक हो सकते हैं।

बाधाओं से मुक्ति के कुछ प्रमुख उपायों का उल्लेख प्रस्तुत है, जिन्हें अपनाने से छात्रों को शिक्षा के मार्ग में आने वाली बाधाओं से मुक्ति मिल सकती है और वे वांछित सफलता प्राप्त कर सकते हैं। वहीं प्राप्त विद्या का सदुपयोग भी हो सकता है।

सूर्य : सूर्य तथा शनि या राहु की द्वितीय भाव पर दृष्टि अशुभ होती है। इससे मुक्ति हेतु दोनों ग्रहों की शांति करानी चाहिए। सूर्य द्वितीयेश की स्थिति में शुभ न हो, तो उसकी शांति अवश्य करानी चाहिए। सूर्यजनित अन्य बाधाओं से मुक्ति एवं बचाव के उपाय इस प्रकार हैं।

सूर्य का यंत्र अथवा पेंडल धारण करें।

सहज ध्यान योग करें।

भगवान सूर्य देव का ऐसा पूर्ण चित्र, जिसमें सूर्य, रथ, घोड़ों और सारथी अरुण का स्पष्ट दर्शन हो, अध्ययन कक्ष में लगाएं।

चंद्र : मन के कारक चंद्र का विद्याभ्यास में विशेष महत्व है। यह छात्र को अध्ययन के प्रति एकाग्र करता है। इसके अशुभ प्रभावों के फलस्वरूप उत्पन्न बाधाओं से मुक्ति के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।

श्वेता सरस्वती की आराधना करें।

चांदी की थाली में केसर से चंद्र राशि के अनुसार पंचदशी यंत्र बनाकर उसमें खीर खाएं, मन एकाग्र होगा और विद्या प्राप्ति के अच्छे अवसर सामने आएंगे।

पूर्णिमा के दिन ऋषि मुनियों, मठाधीशों तथा ज्ञानीजनों का आशीर्वाद प्राप्त करें।

मंगल : मंगलजनित बाधाओं से मुक्ति एवं बचाव हेतु निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।

आधा भाग चावल तथा आधा भाग पंचमेवे के मिश्रण से खीर बनाकर भगवान शिव को भोग लगाएं। यह क्रिया चालीसा दिनों तक नियमित रूप से करें।

हनुमान चालीसा का नित्य निष्ठापूर्वक पाठ करें।

अध्ययन के लिए अग्नि कोण में पीठ करके बैठें। यथासंभव उत्तराभिमुख ही बैठें।

बुध : बुध की अशुभ स्थिति के कारण उत्पन्न बाधाओं से मुक्ति हेतु निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।

भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाएं।

पढ़ाई लकड़ी के टेबुल पर हरे रंग का कपड़ा बिछा कर करें।

पन्ना पहनें।

शुक्र : शुक्रजनित बाधा से बचाव के उपाय इस प्रकार हैं।

भगवती कमला महाविद्या की निष्ठापूर्वक उपासना करें।

शिवजी को नियमित रूप से सफेद आक का फूल चढ़ाएं। इसके अभाव में अन्य सफेद फूल चढ़ाएं।

शुक्रवार को स्कूल के विद्यार्थियों को अथवा छोटे बच्चों को खीर खिलाएं।

शनि : शनि विद्या प्राप्ति में विशेष बाधक ग्रह माना जाता है। इसके विपरीत कुछ महत्वपूर्ण विद्या शनि के कारण ही प्राप्त होती है। शनि के कारण उत्पन्न बाधाओं से मुक्ति हेतु निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।

महाविद्या महाकाली की उपासना करें।

प्रत्येक शनिवार को काले कुत्ते को शहद तथा रोटी खिलाएं।

ऋण लेकर पढ़ाई न करें।

घर में लोहे की बजाय लकड़ी की कुर्सी और टेबुल का उपयोग करें।

महामृत्युंजय मंत्र का ÷पुष्टिबर्धनम्‌' वाला प्रयोग करें।

अध्ययन कक्ष के दरवाजों में लगी सांकल, चटखनियों, कब्जों आदि पर शनिवार को संध्या के समय तेल लगाएं।

राहु : शनि की तरह राहु भी शिक्षा में बाधक होता है। इस ग्रह के कारण उत्पन्न बाधाओं से मुक्ति और बचाव हेतु निम्नलिखित उपाय करें।

मिश्रित अनाज से बनी रोटी, बे्रड या बिस्कुट काले और भूरे कुत्ते को खिलाएं।

भगवती छिन्नमस्ता का तंत्रानुष्ठान करें।

टाइगर आइ (व्याघ्रमणि) का पेंडल पंचम धातु में पहनें।

भेरूजी को दीपदान करें।

रोज प्रातःकाल आंवले के मुरब्बे का सेवन करें।

विशेष : ग्रहों की अशुभ स्थिति के फलस्वरूप या अन्य कारणों से विद्या प्राप्ति में बाधा आ रही हो, एकाग्रता की कमी हो, स्मरण शक्ति कमजोर हो गई हो, तो महाविद्या तारा और नील सरस्वती की उपासना अनुष्ठानपूर्वक करनी चाहिए और उनके यंत्र धारण करने चाहिए।
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Wednesday, July 25, 2012

विद्या प्राप्ति में बाधा : कारण और निवारण

विद्या प्राप्ति में बाधा : कारण और निवारण

विद्या को धन कहा गया है। मानव जीवन के विकास में शिक्षा की भूमिका अहम होती है। इसके बिना मनुष्य का जीवन पशुवत होता है। माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा देकर उनके जीवन को संवारने का हर संभव प्रयास करते हैं। किंतु अक्सर देखने में आता है कि सारे प्रयासों के बावजूद बच्चों की शिक्षा में तरह-तरह की बाधाएं आती हैं। पाठकों के लाभार्थ यहां बाधाओं का विशद विवरण प्रस्तुत है।
विद्या को चूंकि धन माना गया है, इसलिए ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसका विचार धन भाव से भी किया जाता है। फलदीपिका के प्रथम अध्याय के दसवें श्लोक में स्पष्ट रूप से लिखा है-
वित्तं विद्या स्वान्नपानानि भुक्तिं दक्षाक्ष्यास्थं पत्रिका वाक्कुटुबंम॥
अर्थात धन, विद्या, स्वयं के अधिकार की वस्तु, वाणी आदि का विचार द्वितीय भाव से करना चाहिए।
विद्या तथा द्वितीय भाव और ग्रह
यदि द्वितीय भाव में कोई शुभ ग्रह स्थित हो, इसका संबंध स्वगृही, उच्चस्थ तथा मित्र राशिस्थ ग्रह से हो, तो शिक्षा प्राप्ति में किसी प्रकार की बाधा नहीं आती। शुभ ग्रहों की दृष्टि के फलस्वरूप भी शिक्षा बाधामुक्त होती है, और छात्र एक के बाद एक सफलता की सीढ़ियां चढ़ता चला जाता है।
अष्टम भाव में सिथत नीच ग्रह भी कई बार उच्च शिक्षा की प्राप्ति में सहायक होता है। इसके फलस्वरूप छात्र के लिए जन्मस्थान से दूर या विदेश में रहकर भी विद्या प्राप्ति का योग बनता है। इस भाव में स्थित अशुभ, पापी या क्रूर ग्रह छात्र के विदेश अथवा होस्टल में रहकर विद्याध्ययन के योग बना सकते हैं।
द्वितीय भाव पर ग्रहों के अशुभ प्रभाव विद्या प्राप्ति में बाधा पहुंचा सकते हैं। सूर्य, शनि तथा राहु की पृथकताकारी दृष्टि के प्रभाववश विद्या प्राप्ति में बड़ा संकट आता है। दूसरी तफर, गुरु यदि द्वितीय भाव में स्थित हो, तो प्राप्त विद्या का सही उपयोग नहीं हो पाता है। शुक्र की स्थिति अच्छी विद्या दिलाती है, किंतु अष्टमस्थ शुक्र की दृष्टि यदि द्वितीय भाव पर हो, तो शिक्षा प्राप्ति में अप्रत्याशित संकट या बाधाएं सकती हैं। राहु यदि किसी राशि में छठे, आठवें या दसवें भाव में हो, तो छात्र का अध्ययन में मन नहीं लगता, जिससे उसकी शिक्षा बाधित होती है। शनि की पांचवें और आठवें भावों में स्थिति भी शिक्षा की प्राप्ति में बाधक होती है। यह बाधा धन के कारण भी संभव है। शनि की इस स्थिति से प्राप्त विद्या का सदुपयोग भी नहीं हो पाता है। इसी प्रकार अन्य ग्रह भी विद्या प्राप्ति में बाधक हो सकते हैं।
बाधाओं से मुक्ति के कुछ प्रमुख उपायों का उल्लेख प्रस्तुत है, जिन्हें अपनाने से छात्रों को शिक्षा के मार्ग में आने वाली बाधाओं से मुक्ति मिल सकती है और वे वांछित सफलता प्राप्त कर सकते हैं। वहीं प्राप्त विद्या का सदुपयोग भी हो सकता है।
सूर्य : सूर्य तथा शनि या राहु की द्वितीय भाव पर दृष्टि अशुभ होती है। इससे मुक्ति हेतु दोनों ग्रहों की शांति करानी चाहिए। सूर्य द्वितीयेश की स्थिति में शुभ हो, तो उसकी शांति अवश्य करानी चाहिए। सूर्यजनित अन्य बाधाओं से मुक्ति एवं बचाव के उपाय इस प्रकार हैं।
सूर्य का यंत्र अथवा पेंडल धारण करें।
सहज ध्यान योग करें।
भगवान सूर्य देव का ऐसा पूर्ण चित्र, जिसमें सूर्य, रथ, घोड़ों और सारथी अरुण का स्पष्ट दर्शन हो, अध्ययन कक्ष में लगाएं।
चंद्र : मन के कारक चंद्र का विद्याभ्यास में विशेष महत्व है। यह छात्र को अध्ययन के प्रति एकाग्र करता है। इसके अशुभ प्रभावों के फलस्वरूप उत्पन्न बाधाओं से मुक्ति के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।
श्वेता सरस्वती की आराधना करें।
चांदी की थाली में केसर से चंद्र राशि के अनुसार पंचदशी यंत्र बनाकर उसमें खीर खाएं, मन एकाग्र होगा और विद्या प्राप्ति के अच्छे अवसर सामने आएंगे।
पूर्णिमा के दिन ऋषि मुनियों, मठाधीशों तथा ज्ञानीजनों का आशीर्वाद प्राप्त करें।
मंगल : मंगलजनित बाधाओं से मुक्ति एवं बचाव हेतु निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।
आधा भाग चावल तथा आधा भाग पंचमेवे के मिश्रण से खीर बनाकर भगवान शिव को भोग लगाएं। यह क्रिया चालीसा दिनों तक नियमित रूप से करें।
हनुमान चालीसा का नित्य निष्ठापूर्वक पाठ करें।
अध्ययन के लिए अग्नि कोण में पीठ करके बैठें। यथासंभव उत्तराभिमुख ही बैठें।
बुध : बुध की अशुभ स्थिति के कारण उत्पन्न बाधाओं से मुक्ति हेतु निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।
भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाएं।
पढ़ाई लकड़ी के टेबुल पर हरे रंग का कपड़ा बिछा कर करें।
पन्ना पहनें।
शुक्र : शुक्रजनित बाधा से बचाव के उपाय इस प्रकार हैं।
भगवती कमला महाविद्या की निष्ठापूर्वक उपासना करें।
शिवजी को नियमित रूप से सफेद आक का फूल चढ़ाएं। इसके अभाव में अन्य सफेद फूल चढ़ाएं।
शुक्रवार को स्कूल के विद्यार्थियों को अथवा छोटे बच्चों को खीर खिलाएं।
शनि : शनि विद्या प्राप्ति में विशेष बाधक ग्रह माना जाता है। इसके विपरीत कुछ महत्वपूर्ण विद्या शनि के कारण ही प्राप्त होती है। शनि के कारण उत्पन्न बाधाओं से मुक्ति हेतु निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।
महाविद्या महाकाली की उपासना करें।
प्रत्येक शनिवार को काले कुत्ते को शहद तथा रोटी खिलाएं।
ऋण लेकर पढ़ाई करें।
घर में लोहे की बजाय लकड़ी की कुर्सी और टेबुल का उपयोग करें।
महामृत्युंजय मंत्र का ÷पुष्टिबर्धनम्‌' वाला प्रयोग करें।
अध्ययन कक्ष के दरवाजों में लगी सांकल, चटखनियों, कब्जों आदि पर शनिवार को संध्या के समय तेल लगाएं।
राहु : शनि की तरह राहु भी शिक्षा में बाधक होता है। इस ग्रह के कारण उत्पन्न बाधाओं से मुक्ति और बचाव हेतु निम्नलिखित उपाय करें।
मिश्रित अनाज से बनी रोटी, बे्रड या बिस्कुट काले और भूरे कुत्ते को खिलाएं।
भगवती छिन्नमस्ता का तंत्रानुष्ठान करें।
टाइगर आइ (व्याघ्रमणि) का पेंडल पंचम धातु में पहनें।
भेरूजी को दीपदान करें।
रोज प्रातःकाल आंवले के मुरब्बे का सेवन करें।
विशेष : ग्रहों की अशुभ स्थिति के फलस्वरूप या अन्य कारणों से विद्या प्राप्ति में बाधा रही हो, एकाग्रता की कमी हो, स्मरण शक्ति कमजोर हो गई हो, तो महाविद्या तारा और नील सरस्वती की उपासना अनुष्ठानपूर्वक करनी चाहिए और उनके यंत्र धारण करने चाहिए