Monday, January 16, 2012

VASTU SHASTRA वास्तु और सुखी गृहस्थ जीवन पति पत्नी के सुखी जीवन के लिये वास्तु की उपयोगिता


वास्तु और सुखी गृहस्थ जीवन
पति पत्नी के सुखी जीवन के लिये वास्तु की उपयोगिता

आज के भौतिक संसार में मनुष्य अध्यात्म को छोड़कर भौतिक सुखों के पीछे भाग रहा है। समय के अभाव ने उसे रिश्तों के प्रति उदासीन बना दिया है। किंतु आज भी मनुष्य अपने घर में संसार के सारे सुखों को भोगना चाहता है। इसके लिए हमें वैवाहिक जीवन को वास्तु से जोड़ना होगा। वास्तव में हम ऐसा क्या करें कि पति-पत्नी के बीच अहंकार की जगह प्रेम, प्रतियोगिता के स्थान पर सानिध्य मिले।

यद्यपि गृहस्थ जीवन में या व्याहारिक जीवन में कोई भी छोटा सा कारण एक बड़े कारण में परिवर्तित हो जाता है। चाहे वह आर्थिक हो या घर के अन्य सदस्यों को लेकर हो। इसका सीधा प्रभाव पति-पत्नी के आपसी संबंधों पर पड़ता है। इसलिए घर का वातावरण ऐसा होना चाहिए कि ऋणात्मक शक्तियां कम तथा सकारात्मक शक्तियां अधिक क्रियाशील हों। यह सब वास्तु के द्वारा ही संभव हो सकता है।

घर के ईशान कोण का बहुत ही महत्व है। यदि पति-पत्नी साथ बैठकर पूजा करें तो उनका आपस का अहंकार खत्म होकर संबंधों में मधुरता बढ़ेगी। गृहलक्ष्मी द्वारा संध्या के समय तुलसी में दीपक जलाने से नकारात्मक शक्तियों को कम किया जा सकता है। घर के हर कमरे के ईशान कोण को साफ रखें, विशेषकर शयनकक्ष के।

पति-पत्नी में आपस में वैमनस्यता का एक कारण सही दिशा में शयनकक्ष का न होना भी है। अगर दक्षिण-पश्चिम दिशाओं में स्थित कोने में बने कमरों में आपकी आवास व्यवस्था नहीं है तो प्रेम संबंध अच्छे के बजाए, कटुता भरे हो जाते हैं।

शयनकक्ष के लिए दक्षिण दिशा निर्धारित करने का कारण यह है कि इस दिशा का स्वामी यम, शक्ति एवं विश्रामदायक है। घर में आराम से सोने के लिए दक्षिण एवं नैऋत्य कोण उपयुक्त है। शयनकक्ष में पति-पत्नी का सामान्य फोटो होने के बजाए हंसता हुआ हो, तो वास्तु के अनुसार उचित रहता है।

घर के अंदर उत्तर-पूर्व दिशाओं के कोने के कक्ष में अगर शौचालय है तो पति-पत्नी का जीवन बड़ा अशांत रहता है। आर्थिक संकट व संतान सुख में कमी आती है। इसलिए शौचालय हटा देना ही उचित है। अगर हटाना संभव न हो तो शीशे के एक बर्तन में समुद्री नमक रखें। यह अगर सील जाए तो बदल दें। अगर यह संभव न हो तो मिट्टी के एक बर्तन में सेंधा नमक डालकर रखें।

घर के अंदर यदि रसोई सही दिशा में नहीं है तो ऐसी अवस्था में पति-पत्नी के विचार कभी नहीं मिलेंगे। रिश्तों में कड़वाहट दिनों-दिन बढ़ेगी। कारण अग्नि का कहीं ओर जलना। रसोई घर की सही दिशा है आग्नेय कोण। अगर आग्नेय दिशा में संभव नहीं है तो अन्य वैकल्पिक दिशाएं हैं। आग्नेय एवं दक्षिण के बीच, आग्नेय एवं पूर्व के बीच, वायव्य एवं उत्तर के बीच।

अत: यदि हम अपने वैवाहिक जीवन को सुखद एवं समृद्ध बनाना चाहते हैं और अपेक्षा करते हैं कि जीवन के सुंदर स्वप्न को साकार कर सकें। इसके लिए पूर्ण निष्ठा एवं श्रद्धा से वास्तु के उपायों को अपनाकर अपने जीवन में खुशहाली लाएं।
------------------------------- ॐ जय  श्री राधा कृष्णाय नमः। ---------------------------------------------
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ऑफिस का वास्तु (OFFICE KA VASTU) वास्तुशास्त्र में कार्यालय प्रबंघन


वास्तुशास्त्र में कार्यालय प्रबंघन
किसी भी वास्तु खंड में सर्वश्रेष्ठ स्थिति दक्षिण दिशा की मानी गई है। वास्तु संबंघी किसी भी पुराने वास्तुशास्त्र में दक्षिण-पश्चिम को प्रमुख स्थान नहीं दिया गया है। प्राचीन योजनाओं में दक्षिण-पश्चिम में शस्त्रागार के लिए स्थान बताया है। लगभग सभी शास्त्रों मे वास्तु खंड में दक्षिण दिशा तथा जन्मपत्रिका में दशम भाव (दक्षिण दिशा) को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है
अत: स्वामी, मैनेजिंग डायरेक्टर, चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर या स्वमी की अनुपस्थिति में कार्यालय में द्वितीय स्थान रखने वाले अघिकारी को बैठाना चाहिए। उन्हें यदि उत्तर की ओर मुंह करके बैठाया जाए तो श्रेष्ठ रहता है अन्यथा पूर्व में मुख करके भी बैठाया जा सकता है।
यदि गलती से मुख्य कार्यकारी अघिकारी अग्निकोण में बैठे उसका अघीनस्थ अघिकारी दक्षिण में बैठे तो थोडे दिनों में ही दोनों का अहम टकराने लगेगा और अघीनस्थ अघिकारी अपने वरिष्ठ की आज्ञा का उल्लंघन करने की स्थिति में जाएगा।
इसी भांति यदि मुख्य अघिकारी उत्तर, पश्चिम या पूर्व में बैठे तथा कनिष्ठ अघिकारी दक्षिण, दक्षिण-पूर्व या दक्षिण-पश्चि में बैठे तो भी वरिष्ठतम अघिकारी का नियंत्रण कार्यालय पर नहीं रह पाएगा तथा कार्यालय में अराजकता फैल जाएगी।


वायव्य कोण में बैठने वाले कर्मचारी प्राय: थोडे समय बाद वहां कम बैठना शुरू कर देते हैं तथा कुछ अघिक समय बीत जाने के बाद वे अन्यत्र कहीं नौकरी पकडने की कोशिश करते हैं। उन्हें अघिक वेतन पर काम मिल भी जाता है। यह कोण माकेटिंग करने वाले व्यक्तियों के लिए श्रेष्ठ है। कोई भी कार्यालय प्रभारी यह चाहेगा कि माकेर्टिग से संबंघित व्यक्ति हमेशा मार्केट में ही रहे। वायव्य कोण में कुछ गुण ही ऎसा है कि व्यक्ति के मन में उच्चाटन की भावनाएं पैदा होती है, इसीलिए विवाह योग्य कन्याओं के लिए भी यही जगह प्रशस्त बताई गई है परंतु 10वीं, 12वीं में पढने वाली लडकियों के लिए वायव्य कोण में सोना खतरनाक है क्योंकि उनका मन घर में नहीं लगेगा।


अग्निकोण में उन कर्मचारियों को स्थान दिया जा सकता है जिनका दिमागी कार्य है तथा जो शोघ कार्य करते रहते हैं। नित नवीन योजनाएँ बनाने वाले कर्मचारियों को भी वहां स्थान दिया जा सकता है। टैस्टिंग लेबोरेटरी भी यहां स्थापित की जा सकती है। अग्निकोण में यदि अघिक वर्षो तक बैठना पडे तो स्वभाव में आवेश आने लगता है। इसका नुकसान अघीनस्थ को तो झेलनासंस्थान को भी झेलना पड सकता है। अग्निकोण में उन्हीं कर्मचारियों को बैठाया जाना चाहिए जिनसे पब्लिक रिलेशंस के कार्य नहीं कराए जाते हों। ऎसे कर्मचारियों को किसी बीम या तहखाने के ऊपर भी नहीं बैठाया जाना चाहिए।

ईशान कोण में यदि वरिष्ठ अघिकारी बैंठे तो भी उत्तम नहीं माना जाता क्योंकि आवश्यक रूप से अन्य शक्तिशाली स्थानों पर अघीनस्थ कर्मचारियों को बैठना पडेगा। ईशान कोण में अपेक्षाकृत कनिष्ठ एवं उन लोगों को बैठाया जाना चाहिए जो वाक्पटु हों और मुस्कुराकर अभिवादन कर सकें।

प्राय: सभी स्थितियों में कर्मचारियों को उत्तराभिमुख बैठना चाहिए और ऎसा हो सकते की स्थिति में पूर्वाभिमुख बैठनाचाहिए।
भारी-भरकम अलमारियाँ या रैक्स नैऋत्य कोण में रखा जाना उचित होता है। ऊंचे या भारी सामान को उत्तर या ईशान कोण में रखने से कार्यालय में बाघाएं उत्पन्नहो जाती है।
बीच में, मघ्य स्थान में अर्थात ब्रास्थान में भी भारी-भरकम सामान या स्थायी स्ट्रक्चर नहीं बनाया जाना चाहिए। बीम या गढा भी यहां नहीं होना चाहिए।

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