मुख्य अशुभ योग (Main Malefic Yog)
जन्मकुण्डली में ग्रहो की अशुभ स्थिति होने पर एंव उनका आपस में या भाव के साथ सम्बन्ध स्थापित करने पर अशुभ योग (Inauspicious
Yog) का निर्माण होता है. मुख्य अशुभ योग इस प्रकार से है.
1) केमद्रुम योग
(Karmadruma Yog)
जन्मकुण्डली में चन्द्रमा के द्वितीय और द्वादश (Moon In 2nd and 12th House) भाव में (चन्द्र के आगे-पीछे) किसी भी ग्रह के न होने पर इस योग का निर्माण होता है. केमद्रुम योग दरिद्रता का परिचायक है.
जन्मकुण्डली में चन्द्रमा के द्वितीय और द्वादश (Moon In 2nd and 12th House) भाव में (चन्द्र के आगे-पीछे) किसी भी ग्रह के न होने पर इस योग का निर्माण होता है. केमद्रुम योग दरिद्रता का परिचायक है.
2) ग्रहण योग (Grahan Yog)
चन्द्रमा के साथ राहु या केतु की युति होने पर इस योग का निर्माण होता है. यदि चन्द्र-राहु/केतु (Combination of Moon with Rahu and Ketu) के साथ सूर्य ग्रह भी संयुक्त हो जाये तो प्रबल ग्रहण योग बनता है. इस अवस्था में मानसिक स्थिति डाँवाडोल रहती है.
चन्द्रमा के साथ राहु या केतु की युति होने पर इस योग का निर्माण होता है. यदि चन्द्र-राहु/केतु (Combination of Moon with Rahu and Ketu) के साथ सूर्य ग्रह भी संयुक्त हो जाये तो प्रबल ग्रहण योग बनता है. इस अवस्था में मानसिक स्थिति डाँवाडोल रहती है.
3) शकट योग (Shakat Yog)
जब चन्द्रमा से छटे या आँठवे भाव में बृहस्पति हो तो शकट योग का निर्माण होता है. यह योग प्रगति में बाधा उत्पन्न करता है.
जब चन्द्रमा से छटे या आँठवे भाव में बृहस्पति हो तो शकट योग का निर्माण होता है. यह योग प्रगति में बाधा उत्पन्न करता है.
4) चाण्डाल योग (Chandal Yog)
जन्मकुण्डली में गुरु के साथ राहु की युति बनने पर चाण्डाल नामक योग का निर्माण होता है. यह योग शिक्षा एंव आर्थिक दृष्टिकोण से हानिप्रद होता है.
जन्मकुण्डली में गुरु के साथ राहु की युति बनने पर चाण्डाल नामक योग का निर्माण होता है. यह योग शिक्षा एंव आर्थिक दृष्टिकोण से हानिप्रद होता है.
5) कुजयोग (Kuja Yog)
जन्मकुण्डली में मंगल ग्रह के 1,4,7,8,12 भाव में होने पर 'कुज' नामक योग होता है. इसे मंगलीक दोष (Mangalik Dosha) नाम से भी कहा जाता है. जन्मकुण्डली में कुछ योग ग्रह का भाव से सम्बन्ध बनाने पर भी बनते हैं, वे इस प्रकार हैं
जन्मकुण्डली में मंगल ग्रह के 1,4,7,8,12 भाव में होने पर 'कुज' नामक योग होता है. इसे मंगलीक दोष (Mangalik Dosha) नाम से भी कहा जाता है. जन्मकुण्डली में कुछ योग ग्रह का भाव से सम्बन्ध बनाने पर भी बनते हैं, वे इस प्रकार हैं
6) शत्रुपीडा/ अस्वस्थ योग
(Shukrapida Yog / Aswastha Yog)
जब लग्नेश का षष्टेश के साथ राशी परिवर्तन या दृष्टि सम्बन्ध योग बन रहा हो तथा लग्नेश कमजोर पड रहा हो तो या तो व्यक्ति का स्वास्थ्य खराब रहता है या फिर उसे शत्रु पीडित करता है.
जब लग्नेश का षष्टेश के साथ राशी परिवर्तन या दृष्टि सम्बन्ध योग बन रहा हो तथा लग्नेश कमजोर पड रहा हो तो या तो व्यक्ति का स्वास्थ्य खराब रहता है या फिर उसे शत्रु पीडित करता है.
7) कर्ज योग (Karj Yog)
जन्मकुण्डली में मंगल के त्रिक भाव (6,8,12) में होने पर एंव लग्नेश व घनेश (2,11) के कमजोर होने पर व्यक्ति कर्ज में डूबा रहता है.
जन्मकुण्डली में मंगल के त्रिक भाव (6,8,12) में होने पर एंव लग्नेश व घनेश (2,11) के कमजोर होने पर व्यक्ति कर्ज में डूबा रहता है.
8)षडयन्त्र योग
(Shadhayantra Yog)
जन्मकुण्डली में लग्नेश के अष्टम भाव(Ascendant Lord In Eigth House) में होने पर तथा उस पर किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि न होने पर व्यक्ति अपने ही निकटवर्ती लोगो के षडयन्त्रो का शिकार होता है.
जन्मकुण्डली में लग्नेश के अष्टम भाव(Ascendant Lord In Eigth House) में होने पर तथा उस पर किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि न होने पर व्यक्ति अपने ही निकटवर्ती लोगो के षडयन्त्रो का शिकार होता है.
9) दरिद्रयोग (Daridra Yog)
जन्मकुण्डली में घनेश एंव लाभेश के त्रिक भाव में होने तथा लग्नेश के कमजोर होने के कारण दरिद्र योग होता है.
जन्मकुण्डली में घनेश एंव लाभेश के त्रिक भाव में होने तथा लग्नेश के कमजोर होने के कारण दरिद्र योग होता है.
10) भाव नाशक योग (Bhava Nashak Yog)
किसी भी भाव का स्वामी त्रिक भाव (Trine Position) में बैठकर भाव की हानि करता है. सम्बन्धित भाव का नुक्सान करने के कारण इसे भाव नाशक योग कहते हैं.
किसी भी भाव का स्वामी त्रिक भाव (Trine Position) में बैठकर भाव की हानि करता है. सम्बन्धित भाव का नुक्सान करने के कारण इसे भाव नाशक योग कहते हैं.
11) व्यय योग (pya yog)
जन्मकुण्डली में व्ययेश के बलवान होने तथा लग्नेश के कमजोर होने पर व्यक्ति के खर्च में अधिकता रहती है अतः इसे व्यय योग कहा जाता है.
जन्मकुण्डली में व्ययेश के बलवान होने तथा लग्नेश के कमजोर होने पर व्यक्ति के खर्च में अधिकता रहती है अतः इसे व्यय योग कहा जाता है.
12) अल्पायु योग (Alpayu Yog)
जन्मकुण्डली में चन्द्रमा के पापी ग्रहो द्वारा पीडित होने या कमजोर होकर त्रिक भाव में बैठने तथा लग्नेश के कमजोर होने के कारण जातक/जातिका (Native) अल्पायु होता है.
जन्मकुण्डली में चन्द्रमा के पापी ग्रहो द्वारा पीडित होने या कमजोर होकर त्रिक भाव में बैठने तथा लग्नेश के कमजोर होने के कारण जातक/जातिका (Native) अल्पायु होता है.
13) मारकेश योग (Marekesh Yog)
द्वितीयेश या सप्तमेश के बलवान होने तथा लग्नेश के कमजोर होने पर मारकेश योग बनता है. इस योग में व्यक्ति दुर्घटना का शिकार हो सकता है.
द्वितीयेश या सप्तमेश के बलवान होने तथा लग्नेश के कमजोर होने पर मारकेश योग बनता है. इस योग में व्यक्ति दुर्घटना का शिकार हो सकता है.
14) षडाष्टक योग (Shadhastak Yog)
जब कोइ एक ग्रह किसी दूसरे ग्रह से छटें या आठवे भाव में स्थित हो तो षडाष्टक योग (Shadhastak Yog) बनता है. इस स्थिति में दोनो भावो से सम्बन्धित व्यक्तियों में शत्रुता का भाव रहता है.
जब कोइ एक ग्रह किसी दूसरे ग्रह से छटें या आठवे भाव में स्थित हो तो षडाष्टक योग (Shadhastak Yog) बनता है. इस स्थिति में दोनो भावो से सम्बन्धित व्यक्तियों में शत्रुता का भाव रहता है.
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----------------- ॐ जय श्री राधा
कृष्णाय नमः। ---------------------------------------------
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